Friday, December 17, 2010

कभी किनारे भी मिलते हैं शायद ....

इक लहर उठती है, दो किनारे मिलते हैं,
मिल के कुछ यूँ बात करते हैं ............
कि लहरें यूँ ही उठती रहे और ये साथ यूँ ही बना रहे .....

सपनो की दुनिया है कुछ ऐसी कि इक एहसास भी वो सुख दे जाता है,
कि हर इक सच झूठा नज़र आता है ......

ये एहसास ही तो है, भला लहरों के उठने से भी किनारे मिला करते हैं ....

No comments:

Post a Comment