Tuesday, March 20, 2012

तुम्हें कुछ कहना
या चुप रहना
एक जैसी बातें हैं .....
 
दिल कहता है,
तुम्हारी खामोशी का इंतज़ार कर लूं ...
या फिर कुछ यूं ही कह दूं .....
और हमेशा की तरह
झिड़क के तुम
खामोश कर दो ............
 
बस ..............

Monday, March 5, 2012

यहीं घर था कभी ............

ताउम्र देखता रहूँगा उस कमरे को ..............

कल मिले थे, साथ जीने-मरने की कसमें खायीं थीं कभी, फिर तू गया, गयी मेरी ज़िन्दगी भी तेरे पीछे ..........

आज मैं इस कब्र में हूँ, तू मेरे सामने वाले कब्र, उसी कमरे में, बेसुध पड़ा है .........

तू सामने है, काफी है, यहीं घर था कभी, आज कब्र है,
और तू मेरे साथ जीने-मरने की कसमें निभा रहा है ...........