Tuesday, March 8, 2011

गुम कहीं शायद ............


किसी नदिया की तरह बहा कर
मुझे ये ज़िन्दगी जाने कहाँ ले आई है ...........................

भीड़ में गुम सा, रास्तों से अनजान
देखता हूँ जब कभी इधर -उधर
कुछ जाने पहचाने चेहरे भी दिख रहे हैं इस शहर में
पर कोई मुझे नहीं देख रहा
जाने क्यों सब अपने-आप में मशगुल हैं .................

हर शहर में एक जैसी इमारतें
एक जैसी शक्लें ......................

लग रहा है जैसे ये नदिया मेरे
साथ मेरी तन्हाई को भी बहा लाई है ...............

Friday, March 4, 2011

अंतर-मंथन ....................

मुरझा गए सारे फूल
या कलियाँ खिलने को है
कहानी ख़त्म हो गई या
शायद शुरू होने को है ..............

हर पल नई राहें
दिखाती ये ज़िन्दगी
न जाने क्या अगले
मोड़ पे होने को है ................

कभी कभी बस यूँ
अनायास ही खो जाता हूँ
सोचने लगता हूँ
क्या सच में कुछ खोने को है ..............

कुछ खोने को है
या फिर कहीं किसी चीज़ पर
नाम लिखा है मेरा ................

धडकन चल रही है
या नया जन्म होने को है .............