किसी नदिया की तरह बहा कर
मुझे ये ज़िन्दगी जाने कहाँ ले आई है ...........................
भीड़ में गुम सा, रास्तों से अनजान
देखता हूँ जब कभी इधर -उधर
कुछ जाने पहचाने चेहरे भी दिख रहे हैं इस शहर में
पर कोई मुझे नहीं देख रहा
जाने क्यों सब अपने-आप में मशगुल हैं .................
हर शहर में एक जैसी इमारतें
एक जैसी शक्लें ......................
लग रहा है जैसे ये नदिया मेरे
साथ मेरी तन्हाई को भी बहा लाई है ...............